चलो बच्चों सा मचलते हैं
चलो गिरकर फिर संभलते हैं
धुप्प अँधेरा है
चुप्पियों ने घेरा है
सड़क सुनसान है
डगर अनजान है
चलो घर से निकलते है
चलो बच्चों सा मचलते हैं
ख्वाहिशे गुमनाम है
दिलकश ये शाम है
खामोश इबारत है
फिजा में शरारत है
चलो बर्फ सा पिघलते हैं
चलो बच्चों सा मचलते हैं
गर तुमने ठाना है
उस पार जाना है
बस्ती है सोई
कश्ती नहीं कोई
चलो लहरों पर चलते हैं
चलो बच्चों सा मचलते हैं
6 टिप्पणियां:
काश!! यह सब कर पाते हम!!
-सुन्दर रचना!
कहते हैं ख्वाहिशें गुमनाम हैं, इसी लिए उन्हें नाम दे दिया, लहरों पे चलते हैं।
मन को छूने वाली रचना।
gar tumne thana hai,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
wah , bahut khoob, vermaji, mubarak.
... बेहद खूबसूरत रचना ।
varma ji
bahut sundar rachna .. dil ko chooti hui .. aur bahut kuch kahti hui ..
itni acchi rachna ke liye badhai ..............
meri nayi poem padhiyenga ...
http://poemsofvijay.blogspot.com
Regards,
Vijay
बहुत अच्छी रचना
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