गुरुवार, 11 जून 2009

लोकतंत्र की पुष्टि के लिए ----


तीन सौ सत्तर मारे गए

केवल आठ हज़ार गुंडे

मैदान में उतारे गए

नोट के लिए

उस माँ का बच्चा

लाया था उसे यहाँ

वोट के लिए

कहीं खो गया, पर

मतदान शांतिपूर्ण ढंग से

संपन्न हो गया

यह बिल्कुल सही है

प्रमाण यह है

मरने वालों में कोई भी

'जेड प्लस' वाला नहीं था

छोटे-मोटे वारदातों से

कहीं डरना होता है?

आम आदमी का मरना भी

कोई मरना होता है!

जो भी मरे हैं

उन्हें आज नही तो कल

मरना ही था

कोई साम्प्रदायिक भीड़ में खोता

तो कोई क़त्ल होता

कुछ अपनी उम्र से मरते

बाकी जिंदा रहते डरते-डरते।


हमारा देश इतना बड़ा है

वर्ष भर में कोई न कोई

हादसा ज़रूर होता

खुले गटर

पुलिस एनकाउंटर

सूखा, भूकंप, बाढ़, दंगा

कब तक रहते ये चंगा

इन सबसे बच भी जाते

तो भी क्या ये जिंदा रह पाते?

सूनी आंखों से क्या

ये अपनी व्यथा कह पाते?

अरे इस बार तो कम मरे हैं

पिछले आंकड़े बताते हैं

लोकतंत्र की पुष्टि के लिए

अभी औरों को मरना था

क्या हुआ जो

सागर का एक बूँद खो गया!

कुशल मनाओ

मतदान शांतिपूर्ण ढंग से

संपन्न हो गया.

6 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

वर्मा जी पहली बार आपका ब्लोग देखा आप कमाल का लिख्ते हैं लोकंतन्त्र के सच को इतनी सही तरह से वयक्त किया है कि निशब्द हो गयी हूँ1एक सश्क्त अभिव्यक्ति शुभकामनायेण आभार्

श्यामल सुमन ने कहा…

बहुत कटाक्ष है परिस्थतियों के ऊपर। वाह।

मरने से पहले मरते सौ बार हम जहाँ में।
चाहत बिना भी सच का पड़ता गला दबाना।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Razia ने कहा…

achchi hai padkar kar kitni tariph karu kum hai

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

मरने वालों में कोई भी'जेड प्लस' वाला नहीं था
kya baat hai ..
aapki sabhi kavitaon se bahut bahut prabhavit hui hun, aapne blog ka naam bilkul satik diya hai 'TRUTH', aapki lekhni ki taqaat bani rahe
bahut bahut badhai

sandhyagupta ने कहा…

Atyant prabhavi rachna.Badhai.

वर्तिका ने कहा…

स-शक्त व्यंग्य है ... कटु सत्या को सामने रख दिया आपने तो...