क्षितिजा जी की बेहद खूबसूरत रचना उफ़ !! के कमेंट में मैनें एक शेर लिखा जिसके प्रतिक्रिया में उनका ईमेल आया :
"वर्मा जी ... आपके कमेन्ट के लिए शुक्रिया ... आप एक बहुत खूबसूरत शेर के साथ अपना कमेन्ट छोड़ कर आयें हैं ... एक गुज़ारिश है ... उसमें चंद शेर और जोड़ कर ग़ज़ल पूरी ज़रूर कीजियेगा ... शुक्रिया"
गुज़ारिश की कद्र और शुक्रिया अदा करते हुए कोशिश किया और जो कुछ बन पड़ा आपके सामने है :
एहसासों को पत्थर की पोशाक क्यूँ है?
मत पूछिए ये दिल चाक-चाक क्यूँ है
एहसासों को पत्थर की पोशाक क्यूँ है?
.
हालात का तर्जुमा तुम्हारी निगाहों में है
दर्द को छुपाने की फिर फिराक़ क्यूँ है?
.
तुम्हारे आँकड़ों पर यकीन करें भी कैसे?
ज़हर भरा आख़िर फिर खुराक़ क्यूँ है?
.
माना परिन्दे छोड़े गये हैं उड़ान भरने को
नकेल से बँधी फिर इनकी नाक क्यूँ है?
.
खुद संभल जाओगे मत माँगो सहारा
रहनुमा में शुमार ओबामा बराक क्यूँ है?
"वर्मा जी ... आपके कमेन्ट के लिए शुक्रिया ... आप एक बहुत खूबसूरत शेर के साथ अपना कमेन्ट छोड़ कर आयें हैं ... एक गुज़ारिश है ... उसमें चंद शेर और जोड़ कर ग़ज़ल पूरी ज़रूर कीजियेगा ... शुक्रिया"
गुज़ारिश की कद्र और शुक्रिया अदा करते हुए कोशिश किया और जो कुछ बन पड़ा आपके सामने है :
एहसासों को पत्थर की पोशाक क्यूँ है?
मत पूछिए ये दिल चाक-चाक क्यूँ है
एहसासों को पत्थर की पोशाक क्यूँ है?
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हालात का तर्जुमा तुम्हारी निगाहों में है
दर्द को छुपाने की फिर फिराक़ क्यूँ है?
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तुम्हारे आँकड़ों पर यकीन करें भी कैसे?
ज़हर भरा आख़िर फिर खुराक़ क्यूँ है?
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माना परिन्दे छोड़े गये हैं उड़ान भरने को
नकेल से बँधी फिर इनकी नाक क्यूँ है?
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खुद संभल जाओगे मत माँगो सहारा
रहनुमा में शुमार ओबामा बराक क्यूँ है?
9 टिप्पणियां:
सबके दिल पत्थर के हो गए हैं ...इसीलिए एहसासों को भी पत्थर की पोशाक दे दी गयी है ....
बहुत खूबसूरत गज़ल कही है ...इस गज़ल के लिए क्षितिजा जी को शुक्रिया ..
खुद संभल जाओगे मत माँगो सहारा
रहनुमा में शुमार ओबामा बराक क्यूँ है?
यह बहुत बढ़िया शेर है ....दिमाग को कौंधाता सा ..
koshish acchi hai verma ji par aap nazmen jyada acchi likhte hain... :)
खुद संभल जाओगे मत माँगो सहारा
रहनुमा में शुमार ओबामा बराक क्यूँ है?
kya bat hai warmaji, bahut badhiya laga ye sher.
इस ओबामा बराक का जवाब नही
प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (22/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
हालात का तर्जुमा तुम्हारी निगाहों में है
दर्द को छुपाने की फिर फिराक़ क्यूँ है?
बहुत खूब ...
खुद संभल जाओगे मत माँगो सहारा
रहनुमा में शुमार ओबामा बराक क्यूँ है?
बिलकुल सही कहा आपने ...
वर्मा जी ... आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ... हर शेर बहुत गहरा है ...
आपने मेरी बात को इतना महत्व दिया उसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ ... धन्यवाद
4.5/10
ग़ज़ल ठीक-ठाक होते हुए भी प्रभाव नहीं छोड़ पा रही है. आखिरी शेर कुछ ख़ास सा है.
एहसासों को पत्थर की पोशाक क्यूँ है?
बड़ा कोमल सा प्रश्न कोमल एहसासों की खातिर!!
सुन्दर!
हालात का तर्जुमा तुम्हारी निगाहों में है
दर्द को छुपाने की फिर फिराक़ क्यूँ है?
वर्मा जी..बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल प्रस्तुत की आपने...क्षितिजा जी को बहुत बहुत बधाई साथ ही साथ सुंदर शेर के प्रस्तुतिकरण के लिए धन्यवाद
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