शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

‘यशस्वी भव’ ‘विजयी भव’ ~~


जा रहा था
उसका बेटा समरमें
पहनकर सेना की
वरदी
नयनों में सागर समेटे
उसकी माँ
यशस्वी भव
और विजयी भवका
वर दी
 *****
प्रसंग चल रहा था
सुग्रीव और
बालि का
तन्मय होकर
देख रही थी
बालिका

5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

दोनों शब्दचित्रों में श्लेष का सुन्दर प्रयोग किया गया है!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

गहन अर्थों को सहेजती अच्छी रचनाएं।

हास्यफुहार ने कहा…

वाह, अद्भुत व्यंजना।

Asha Joglekar ने कहा…

Beautiful. wardi aur war dee tatha bali ka aur balika bahut sunder shlesh alankar ka prayog. Muze marathi kawi moropant jee ki yad aa gaee.

निर्मला कपिला ने कहा…

गहरे भाव लिये सुन्दर रचना
बधाई।