निरावेशन की शून्यता मुझे मंजूर नहीं है ....
मुहअंधेरे- भोर में,
नदी नहा कर
पोंछ रही थी बदन
सूरज की आँख खुल गयी
नज़ारा देख शर्म से लाल हुआ
बढ़ने लगी तपन
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हवाएं
सरसराते हुए
चुपके से
शाखों को झुला रहीं थी झूला
सूरज ने देख लिया
हो रहा है --
आगबबूला
kamal ke shabd chitra
lajawaab soch......bahut hi gahnta.
behatareen shabd chutra , vermaji, badhai sweekaren.
waah ....waah ......waah aapki lekhani ko salam.......bahut thode me ......bahut hi sundar chitran
बहुत सुन्दर और लाजवाब कविता...बहुत पसंद आई...दोनों रचनाएं शब्दों से चित्र उकेर रहीं है...
बहुत सुन्दर शब्द चित्र खीचा है।बधाई।
पहली बार आया आपके ब्लोग पर, अच्छा लगा/आप्की रचनाये अर्थ पूर्ण है/ कम शब्दो मे सार्थक बात/
वाह शर्म से लाल हुआ ।मजा आ गया।
प्रकृति और मानवीय भाव-व्यापार एकमेक हो गये । सुन्दर अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।
waah! kamaal ki shanikayein hai sir...
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10 टिप्पणियां:
kamal ke shabd chitra
lajawaab soch......bahut hi gahnta.
behatareen shabd chutra , vermaji, badhai sweekaren.
waah ....waah ......waah
aapki lekhani ko salam.......bahut thode me ......bahut hi sundar chitran
बहुत सुन्दर और लाजवाब कविता...
बहुत पसंद आई...
दोनों रचनाएं शब्दों से चित्र उकेर रहीं है...
बहुत सुन्दर शब्द चित्र खीचा है।बधाई।
पहली बार आया आपके ब्लोग पर, अच्छा लगा/
आप्की रचनाये अर्थ पूर्ण है/ कम शब्दो मे सार्थक बात/
वाह शर्म से लाल हुआ ।
मजा आ गया।
प्रकृति और मानवीय भाव-व्यापार एकमेक हो गये । सुन्दर अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।
waah! kamaal ki shanikayein hai sir...
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