शनिवार, 26 जून 2010

एक गाँव मर रहा है ....

पिछले दिनों मैं अपने पैतृक नगर वाराणसी गया हुआ था. वाराणसी में मेरा गाँव शहर से सटा हुआ वाराणसी स्टेशन से लगभग 3 किमी की दूरी पर है. हर बार जब भी मैं अपने गाँव से लौटता हूँ तो मन में वितृष्णा और विषाद लेकर लौटना पड़ता है क्योंकि एक सलोने और सुन्दर गाँव को मरते देखने जैसी अनुभूति पैदा होती है. शहर के नज़दीक होने के कारण और जनसंख्या के दबाव के कारण फसल उगाते गाँव को अपना स्वरूप बदलना पड़ रहा है. ईटों और कंक्रीटों का आक्रमण मासूम खेतों को झेलना पड़ रहा है और बने अधबने मकानों का एक जंगल खड़ा होता जा रहा है. और फिर संस्कृति के अपमिश्रण से अजीब सी तमाम विसंगतियों से युक्त संस्कृति का जन्म होता जा रहा है. कहीं कहीं फसलों की हरियाली भी नज़र आती है पर निकट भविष्य में ही ये भूतकाल के दृश्य होने जा रहे हैं अपने घर के छत से एक विहंगम दृश्य लिया है आप भा अवलोकन करें :

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उफ ! लगता है अब तक मैनें अपने गाँव का नाम नहीं बताया है. मेरे गाँव का नाम फुलवरिया है. यह लहरतारा (कबीर दास जी वाले) के पास स्थित है. इसके पूर्व में '39 गोरखा ट्रेनिंग सेंटर' है तो पश्चिम में 'वरूणा नदी' बहती है. कुछ दृश्य वरूणा नदी का भी :

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यह वही वरूणा नदी है जिसके नाम को समाहित करते हुए शहर का नाम 'वाराणसी' पड़ा है. वरूणा + अस्सी = वाराणसी (अस्सी गंगा नदी का सुप्रसिद्ध घाट)

आम नदियों सा इस नदी का भी हश्र हो रहा है देखे :

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प्रदूषण का ज़हर इसे भी निगलने जा रहा है.

अब मेरे गाँव का सूरज कुछ इस तरह निकलता है

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कुछ और चित्र देखे :

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जी हाँ लंगोट भी खो गया है. फिर मैं पीछे क्यूँ रहूँ, लो जी मैं भी गदा उठा लिया :

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और अंत में विषादों को सहेजे इसी समानांतर पथ पर 'गरीब रथ' से वापस आ गया.

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अगली पोस्ट : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के बारे में शीघ्र ही

 

6 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत बढ़िया सचित्र जानकारी दी है ...आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सन्त कबीर को नमन!
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आपकी चित्रों से सजी हुई पोस्ट बहुत बढ़िया रही!

Shabad shabad ने कहा…

बढ़िया पोस्ट.....

सजी हुई.. चित्रों से...

ghughutibasuti ने कहा…

नदियों का नालों में परिवर्तित होना दुखद है।
घुघूती बासूती

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

banaras to le gaye aap verma ji ..par bada dukh hota hai ab us shiv nagri ko dekh kar..lekin khush hun ...kai maheene ho gaye the banaras ghume..aaj ek nazra pad hi gayi ..

Alpana Verma ने कहा…

गाँव सभी धीरे धीरे अपना पुराना रूप खो रहे है.आप की चिंता भी जायज है कि कहीं कहीं फसलों की हरियाली भी नज़र आती है पर निकट भविष्य में ही ये भूतकाल के दृश्य होने जा रहे हैं .