शुक्रवार, 18 जून 2010

मुद्दतों से न आँख लगी ~ ~

आँसू न हो

किसी किसान की आँख में

अबकी बरस,

बादल हर खेत में जाकर

झूमकर तूँ

अब तो बरस.

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.

जब से तुमसे

आँख लगी,

अर्सा हो गया सोये हुए

रात आँखों में कटी

मुद्दतों से न

आँख लगी.

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8 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

sundar prastuti.,,,,,,gahre bhav.

Razia ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्दों की बाजीगरी और सुन्दर भाव

Unknown ने कहा…

बारिश का इन्तजार करती आँखें...और मुद्दतों से किसी का इन्तजार करती आँखों मे कितना साम्य है.....दो अलग भावनाओं में पिरोई कविताएं...एक स्थान पर पहुँचती है....बधाई वर्मा जी...

AMAN ने कहा…

बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बरस और आँख लगी....दोनों शब्दों में गज़ब का चमत्कार किया है...सुन्दर प्रस्तुति

नीरज गोस्वामी ने कहा…

लाजवाब रचना...
नीरज

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

विरोधाभ्हासी अर्थो से बनी सुंदर क्षणिका !

Alpana Verma ने कहा…

पहली कविता में की गयी प्रार्थना स्वीकार हो..ईश्वर करे किसी किसान की आँख में अब के बरस न आंसू हों...दूसरी रचना प्रेम के अधीन मन की स्थित बता रही है.