बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

वटवृक्ष पर मेरी कविता ....



1 टिप्पणी:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अरे! हमसे सीखो
हम अपना धर्म बचाने के लिए
क्या नहीं करते हैं !
कभी बारूद बनकर मारते हैं
तो कभी बारूद से मरते हैं।

seedhe wahan jaakar kavita padh daali.... jana sahi saabit hua... bahut hi umda rachna hai...