रविवार, 28 नवंबर 2010

तुम शब्द सम्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर --

तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावर
तुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर
ढूढ़ रहा मैं ठाँव तुम्हारा
ढूढ़ रहा मैं गाँव तुम्हारा
तुम यहाँ, फिर पलांश में जाने कहाँ गयी
तुम रहस्यमयी, या फिर शायद कालजयी

तुम स्मृतियों की छाया, नित नूतन-नयी
तुम सिहरन हो, कपोत की हो धवल पर
तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावर
तुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर
एक झलक आस में हूँ
विचलित हूँ संत्रास में हूँ
तुम सघन तिलस्म हो या फिर छलावा हो
तप्त भूगर्भी रत्नों की पिघली हुई लावा हो
तुम नदी हो, सागर-लहरो की बुलावा हो
तुम शब्द सम्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर

तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावर
तुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर

16 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यह ढाई आखर बहुत सुन्दर शब्दों से रचित लगे ...

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

आपके शब्दों का चयन पूरी कविता को प्रभावी व आकर्षक बना देती है. इक एक शब्द बेहद प्रभावशाली!!!!!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ही प्रवाहपूर्ण भावमयी अभिव्यक्ति...बधाई

Razia ने कहा…

बहुत सुन्दर और प्रभावशाली रचना
भाव और शब्दचयन सुन्दर है

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

AMAN ने कहा…

vaah! very beautiful poem

वाणी गीत ने कहा…

तुम शब्द सम्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावर
तुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर...

बहुत खूबसूरत गीत !

वाणी गीत ने कहा…

तुम शब्द सम्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावर
तुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर...

बहुत खूबसूरत गीत !

वाणी गीत ने कहा…

तुम शब्द सम्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावर
तुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर...

बहुत खूबसूरत गीत !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति.

सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
को दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

अनुपमा पाठक ने कहा…

बहुत सुन्दर उपमाएं ...
मनोहारी गीत!!!

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्दचयन खूबसूरत भावाभिव्यक्ति.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुम सघन तिलस्म हो या फिर छलावा हो

तप्त भूगर्भी रत्नों की पिघली हुई लावा हो

तुम नदी हो, सागर-लहरो की बुलावा हो

तुम शब्द सम्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर

तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावर

तुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर

to jo kuch ho mere shabd tumhen chitrit karte rahenge

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव प्रभावशाली रचना... आभार. (शुक्रिया चर्चामंच)

अर्चना तिवारी ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना है ढाई आखर...प्रेम की अभिव्यक्ति