अभी भवन निर्माण का कार्य सम्पन्न भी नहीं हुआ था पर मंत्रालय से सूचना आ गयी कि कल मंत्री जी भवन का उद्घाटन करने वाले हैं. सारा का सारा महकमा व्यवस्था में लगा हुआ था. भवन के पिछले हिस्से का कार्य चल ही रहा था. अफरा-तफरी के इस माहौल में तय हुआ कि भवन के पिछले हिस्से को ढक दिया जाये और मंत्री जी से भवन के मुख्य द्वार पर फीता कटवाकर उद्घाटन करवा लिया जाये. सारे के सारे मजदूर पीछे के हिस्से में ही रहें, यह जाहिर न होने पाये कि अभी कार्य चल रहा है. तभी सूचना मिली की सभी मजदूर पिछले हिस्से के एक भाग के गिरने से दब गये हैं. आपात मीटिंग बुलाई गई. तय हुआ कि क्योंकि अब समय कम है अत: राहतकार्य तुरंत न शुरू करके उद्घाटन के बाद करवाया जायेगा. सहमति के बीच एक आशंका भी उठी कि कहीं दबे हुए मजदूर उद्धाटन के दौरान ही चीख-पुकार मचाने लग गये तो क्या होगा?
अंततोगत्वा, कुछ अधिकारी घटनास्थल पर पहुँचे और दबे हुए मजदूरों से बोले “तुम्हें हर हालत में अपनी चीख दबाकर रखनी है, हम भवन के उद्घाटन के तुरंत बाद न केवल बाहर निकालेंगे वरन तय मुआवजे से ज्यादा मुआवजा भी दिलवायेंगे”. मजदूर आस के सहारे बिना चीखे पड़े रहे और उद्घाटन समारोह पूर्वक सम्पन्न हो गया. मंत्री ने भवन की आलीशानता की तारीफ की. सफल कार्यक्रम की सम्पन्नता से उत्साहित पूरा विभाग दावत में व्यस्त हो गया. सभी उन दबे मजदूरों को भूल गये. वे मजदूर मुआवजे के सपनों के बीच आज भी वहीं दबे पड़े हैं और विभाग उद्धाटन की दावत में व्यस्त है.
12 टिप्पणियां:
बहुत निर्मम कथा है। लगता है वह अकेला मजदूर भवन निर्माण कर रहा था। दूसरे मजदूर थे ही नहीं। मजदूर इतने खुदगर्ज नहीं होते। कि उन का साथी दबा पड़ा रहे और कोई मंत्री उद्घाटन का फीता काट जाए।
अगर यह सत्य है तो यह हमारा दुर्भाग्य नहीं तो कृष्ण चंदर की कहानी जामुन का पेड़ याद आरही है
दुर्भाग्यपूर्ण...
वह मजदूर मुआवजे के सपनों के बीच आज भी वहीं दबा पड़ा है और विभाग उद्धाटन की दावत में व्यस्त है.
यह एक बिम्ब प्रस्तुत किया है जो सच के करीब है ...मजदूर आम जनता है जो ऐसे ही दबी हुई है ...मार्मिक चित्रण
बहुत सुन्दर बिम्ब के माध्यम से करारा व्यंग्य
Samaj ke vikrat yatharth ko bayan karti saarthak rachna.
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्यागख्याै।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
उफ़ बेहद मार्मिक और यथार्थ को दर्शाती लघुकथा दिल को छू गयी।
दुर्भाग्यपूर्ण ....पर हकीकत
सरकारी तंत्र का निर्मम चेहरा-आपकी की इस लघुकथा में देखने को मिला.बहुत ही अच्छा कटाक्ष किया हॆ.कृष्ण चंदर के ’गड्ढा’नाटक की याद आ गयी.
mera mann bhi wahi dab gaya hai ... apni is katha ko vatvriksh ke liye parichay tasweer blog link ke saath bhejen
अत्यंत त्रासद...अत्यंत मार्मिक ....
प्रणाम !
सुंदर चित्र खीचा है आप ने . बिलकूल यथार्थ . एस तरह कि मुहिम के लिए जाने कब कोई ' अन्ना आएगा .
साधुवाद !
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