पूरा का पूरा महकमा हलकान परेशान था. अपराधियों का ताण्डव पूरे शहर के वातावरण को दूषित और दुश्वार करता जा रहा था. सरकार ने फरमान जारी कर दिया था कि कुछ भी किया जाये पर किसी भी आम आदमी को नुकसान नहीं पहुँचना चाहिये. आखिर सरकार इन्हीं आम आदमियों के वोटों से ही तो बनती है. पुलिस वाले आम आदमी को सुरक्षा देने के लिये बैरकें लगाकर आवागमन को दुश्वार बना दिये पर परिणाम वही ढाक के तीन पात, आम आदमी फिर भी चपेट में आते जा रहे थे. अपराधी नये नये हथकंडे अपनाकर बेखौफ़ शिकार कर रहे थे. कोई परिणाम निकलता न देखकर आपातकालीन बैठक बुलाई गई. आम आदमी की सुरक्षा के लिये तमाम सम्भावनाओं को खंगाला गया. अंततोगत्वा निर्णय हुआ कि जब तक इन अपराधियों का आतंक कम न हो जाये शहर के तमाम आम आदमियों को किसी सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट कर दिया जाये, शिकार के अभाव में अपराधी खुद ब खुद पलायन कर जायेंगे. यह उपाय कारगर रहा. अब शहर से किसी भी वारदात की सूचना नहीं मिल रही है. अपराधियों को छोड़कर तमाम आम आदमी शहर के सबसे सुरक्षित स्थान अर्थात जेल के अन्दर जो शिफ्ट किये जा चुके हैं.
12 टिप्पणियां:
सुन्दर लघुकथा!
हालात तो कुछ ऐसे ही हैं । सुन्दर ।
kaarigari ka kaam...nice post !
बिल्कुल सही कहा आपने
जबरदस्त!!!!
यही है सरकार की उलटबांसी ...
:-) ज़बरदस्त कटाक्ष किया है....
मुझे भी सबसे सुरक्षित स्थान की तलाश थी.शुक्र हॆ आपने बता दी.एक सीट मेरी भी रिजर्व करवा देना.सुंदर लघुकथा के लिए धन्यवाद!
gr8
आदरणीय वर्मा जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
अच्छा उपाय किया :)
अलग ही प्रकार की लघुकथा है …
वास्तव में कई समस्याएं सहजता से समाप्त नहीं की जा सकतीं …
* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत यथार्थपरक व्यंग..बहुत सुन्दर
बढ़िया व्यंग्य!!
एक टिप्पणी भेजें