बुधवार, 27 अप्रैल 2011

पहचान – The identity

खुद की पहचान के लिये
उनसे पहचान बनाते-बनाते
मैनें उन्हें पहचान लिया,
और फिर -
पहचान बनते-बनते रह गई.
..
कई बार उन्होनें
पुरजोर कोशिश की
मुझसे पहचान बनाने की,
पर जैसे ही
मुझे पहचाना
पहचान बनते-बनते रह गई.

20 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

चलो अच्छा हुआ समय रहते पहचान हो गयी।
वरना असलियत समझने में उम्र गुजर जाती है।

राम राम वर्मा जी।
बड़े दिनों से ढूंढते-ढूंढते आज मुलाकात हूई।
शुभकामनाएं।
आभार

Sunil Kumar ने कहा…

वर्मा जी सही बात ,हम किसी को जानते पहले हैं फिर पहचानते है धीरज रखिये

virendra sharma ने कहा…

alag andaaz hain aapke !manmohak hain lekhan ke saaz ,bhi arth bhi .
veerubhai

वाणी गीत ने कहा…

पहचानते हुए औरों को कई बार अपनी पहचान खो जाती है ...अपनी पहचान बचाए या दूसरों को पहचाने ..!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मैनें उन्हें पहचान लिया,

और फिर -

पहचान बनते-बनते रह गई... aur phir ek nai shuruaat

दीपक बाबा ने कहा…

वाह वर्मा जी, देखिये इसी पहचान के बहाने अपन की भी पुरानी पहचान निकल आयी.....

कम शब्दों में बेतरीन कविता.

दीपक बाबा ने कहा…

वाह वर्मा जी, देखिये इसी पहचान के बहाने अपन की भी पुरानी पहचान निकल आयी.....

कम शब्दों में बेतरीन कविता.

दीपक बाबा ने कहा…

वाह वर्मा जी, देखिये इसी पहचान के बहाने अपन की भी पुरानी पहचान निकल आयी.....

कम शब्दों में बेतरीन कविता.

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

इशारों अशारों में बडी बात कह दी आपने।

---------
देखिए ब्‍लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्‍वासी आज भी रत्‍नों की अंगूठी पहनते हैं।

रज़िया "राज़" ने कहा…

खुद की पहचान के लिये

उनसे पहचान बनाते-बनाते

मैनें उन्हें पहचान लिया,

और फिर -

पहचान बनते-बनते रह गई.
सुंदर अभिव्यक्ति। बहोत दिनो बाद आपके ब्लोग पर आना हुआ। माफ़ी चाहते हैं।

Kailash Sharma ने कहा…

खुद की पहचान के लिये

उनसे पहचान बनाते-बनाते

मैनें उन्हें पहचान लिया,

और फिर -

पहचान बनते-बनते रह गई.

..

कुछ शब्दों में इतना गहन दर्शन..बहुत प्रभावमयी प्रस्तुति..

Patali-The-Village ने कहा…

कम शब्दों में बेतरीन कविता|धन्यवाद|

रजनीश तिवारी ने कहा…

जानने पहचानने की डगर है ही बड़ी टेढ़ी मेढ़ी और लंबी । बहुत ही अच्छी लगी आपकी रचना । धन्यवाद एवं शुभकामनायें ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

लोग भले ही दावा कर लें की हम किसी को पहचान गए हैं ..पर इंसान कभी कभी स्वयं को भी नहीं पहचान पाता ...यूँ ही कभी कभी पहचान बन जाती है और कभी बनते बनते रह जाती है .. सुन्दर प्रस्तुति ..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पर जैसे ही
मुझे पहचाना
पहचान बनते-बनते रह गई....
bahut khoob ... darasal asli chehra jab saamne aa jata hai to pahchaan hote hote rah jaati hai ... kamaal ka likha hai Varma ji ...

विभूति" ने कहा…

ham aaj bhi apni pahchan talas rahe hai... bhut khubsurat rachna...

Amrita Tanmay ने कहा…

Achchhi rachana....

Arvind Mishra ने कहा…

पहचान का संकट क्यूं ?

mridula pradhan ने कहा…

behad achchi lagi.