जेठ की दुपहरी में
आंचल लहराकर तुमने
एक छत
लिखा है;
मिल
गया आज
मेरे
नाम जो तुमने
ख़त
लिखा है,
एहसासों
के मुँह पर
उंगली
रख मना कर दिया
कुछ
बोलने से;
डायरी
में सहेज कर
ख़ुद
को मना कर दिया
खत
खोलने से.
मुझे
पता है
उस
लिफाफे में महज़
कोरा
कागज़ ही होगा,
अल्फाज़
तो पहले ही
चले
आये हैं;
बादल
यूँ ही तो नहीं
छाये
हैं,
इस खत
की हर इबारत
पढ़
लिया था
मैनें
तो उसी दिन
जब
फ़िजा में मिश्री की डली
अनजाने
में तुम घोल रही थी
गुमसुम–खामोश तुम
नज़रों
से बोल रही थी
नहीं
पढ़ पाऊँगा
कोई
दूसरा ख़त
उस ख़त
को पढ़ लेने के बाद
बेशक
वह
तुम्हारा
लिखा ही क्यों न हो !!
17 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर ... गुम सुम खामोश नज़रों से बोलना ..अब इसके बाद क्या रह जता है पढ़ना ...
आह क्या भाव संग्रह है।
आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/
इस खत की हर इबारत
पढ़ लिया था
मैनें तो उसी दिन
जब फ़िजा में मिश्री की डली
अनजाने में तुम घोल रही थी
गुमसुम–खामोश तुम
नज़रों से बोल रही थी
waah
जहाँ बात बिना लिखे , बिना कहे पहुँचती हो , वहां शब्दों का क्या काम , वो चाहे प्रिय के लिखे ही क्यों ना हो ...
बेहद खूबसूरत एहसास !
sunder shabd sayojan
hamesha ki tarah sunder abhivyakti
bahut sunder kham0shi ko aawaj deti hui anokhi rachanna.badhaai aapko.
please visit my blog and leave a comment also.thanks
delicate and enticing piece of work !!
बहुत सशक्त भावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार
वाह! बेहतरीन अभिव्यक्ति... बहुत खूब!
जब फ़िजा में मिश्री की डली
अनजाने में तुम घोल रही थी
गुमसुम–खामोश तुम
नज़रों से बोल रही थी
बेहद खूबसूरत एहसास !
बेहद खूबसूरत शब्दों का संग्रह
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
bhut hi sunder rachna... man ko chu lene wali...
भाव अनुभाव का बेहद अनुपम गुम्फन .आभार आपका इस रचाना के लिए .
बहुत गहरे प्रेण के भाव हैं ... एक बार पढ़ लेने के बाद ... कैसे कुछ और पढ़ूँ ... लाजवाब ...
ग़ज़ब का ख़त. ज़ाहिर है महबूबा का होगा.
अब महबूबा ख़त लिखे और महबूब शेर न कहे,ऐसा कैसे हो सकता है.
बहुत बढ़िया.
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