सोमवार, 16 अप्रैल 2012

अब तक तो वो आई ना

चलो मान लिया
कि तुम नहीं
दृष्टिहीन हो,
पर फायदा क्या
जब तुम्हारे अंदर
दृष्टि ही न हो
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बिछा रखा था
जिसके लिये
हर राह में आईना
आस टूटने लगी है
अब तक तो वो
आई ना
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ओ री सखी !
अब तो शुरू कर दे
सजना
आ ही रहे होंगे
तुम्हारे
सजना

7 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत समय बाद आपने शब्दों का चमत्कार प्रस्तुति किया ... बहुत सुंदर तीनों क्षणिकाएं

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आईना, दृष्टि और सजना
तीनो शब्दों को
पहना दिया आपने
अमोल अर्थों का
सुंदर गहना।

वाह!
क्या कहना!!

vandana gupta ने कहा…

बेहद सुन्दर रचनायें।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर क्षणिकाएं...

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत रचनायें....

मनोज कुमार ने कहा…

ये आई ना और अईना का प्रयोग बड़ा खूबसूरत है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

are waah