रविवार, 24 मई 2009

दो शब्द चित्र (2)


घर के खपरैलों से
आंगन की देहरी पर
धूप यूं पॉव धरती है
जैसे कोई नवेली
हौले हौले
सीढियाँ उतरती है










रास्ते क्या
नज़र नहीं आते?
सुबह के भूले
इन दिनों शाम तक
घर नहीं आते

4 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

donon chitra khubsurat. umda. badhai.

M Verma ने कहा…

THANKS SWAPAN JI FOR NICE COMMENT

Alpana Verma ने कहा…

घर के खपरैलों से
आंगन की देहरी पर
धूप यूं पॉव धरती है
जैसे कोई नवेली
हौले हौले
सीढियाँ उतरती है

waah! bahut hi khubsurat panktiyan hain.

vandana gupta ने कहा…

shandaar abhivyakti hain.