बादलों से हुई
खामोश गुफ्तगू को
एक लहर ने सुना
मन ही मन
कुछ गुना
और यह बात
शहर से कहने को चुना
वह था बेहद भावविभोर
तभी तो
करता हुआ शोर
भागा किनारे की ओर
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सागर को हुआ संकोच
कहीं बात आम न हो जाए
वह बिना बात के
बदनाम न हो जाए
उसने, उसे
रोकने का फैसला किया
देखो -
सैकडो दूसरी लहरों को
उसे वापस लाने के लिए
उसके पीछे दौड़ा दिया
7 टिप्पणियां:
waah waah
kya baat hai !
क्या बात है कही बात न लीक हो जाए . भाई आनंद आ गया . बधाई .
waah kya khoob likha hai......bahut badhiya aur gahri soch
बहुत बढ़िया.
अब तो मैं आपकी दसवी फोल्लोवेर बन गई और आपके ब्लॉग पर आती जाती रहूंगी!
बहुत खूब! एक से बढकर एक है आपकी कविता!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....बहुत खूब.......!!
wahhhh
bahut khoob likha aapne, anand aa gaya bas....
सैकडो दूसरी लहरों कोउसे वापस लाने के लिए उसके पीछे दौड़ा दिया
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