दरख्त !
तुम छू लोगे
आसमान की बुलंदियां एक दिन
बस,
ज़मीन को कसकर पकड़े रहना.
आंधियां आयेंगी
आने दो,
थोड़ा झुककर
इन्हे गुज़र जाने दो
तुम धूप की तपिश में
निखर जाओगे,
नई कोंपले फिर पनपेंगी
रिमझिम फुहार
जब पाओगे,
तुम्हारी छांव में
मुसाफिर फिर सुस्तायेंगे
अपने शाखों को बस
दोनो हांथों से
पकड़े रहना !
11 टिप्पणियां:
बहुत ही गहरी बात कर दी है आपने ..............सही है उच्चाई पानी है तो जमीन से जुडा होना बहुत जरुरी है.
bahut gahrayi hai ............bahut shandaar.
bahut gahrayi hai ............bahut shandaar.
bhut sundar bhavbhivykti.
dil ko chuti hai aapki ye rachna.....
तुम्हारी छांव में मुसाफिर फिर सुस्तायेंगेअपने शाखों को बसदोने हांथों से पकड़े रहना !
ye pankhtiyaan kamaal ki hain bahut khub...
ye
बहतु सुंदर... so wise nd true...
बेहतरीन रचना बधाई.
उम्दा रचना के लिए बधाई! लिखते रहिये!
Very beautifully written!
वाह एकदम पते कि बात सुंदर तरीके से कही है आपने.
सुंदर रचना !
सीख भरी सुंदर सी कविता !!
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