नज़्म सी नाज़ुक
एहसास की टहनी झुकी
विश्वास न जाने क्यूँ
देहरी तक आकर रुकी
भीड़ में ठिठकी हुई
नीड़ की व्यथा
मानवीय संत्रास की
भुगती हुई अंतर्कथा ----
.
अश्क का कुहराम
नयन में आठो पहर
जीजिविषा - संग्राम
शयन में आठो पहर
पहचान सर उठाते नहीं
सागर सा मथा
मानवीय संत्रास की
भुगती हुई अंतर्कथा ----
.
सूक्ष्म संबल हो गया
शहर ये चंबल हो गया
आत्मविश्वास मानो
गरीब का कंबल हो गया
क्लांत परिवेश जैसे
तथागत की 'तथा'
मानवीय संत्रास की
भुगती हुई अंतर्कथा ----
11 टिप्पणियां:
क्लांत परिवेश जैसेतथागत की 'तथा'
....
बहुत सुन्दर गम्भीर रचना. शब्दों का अद्भुत समावेश.
बहुत खूब
BAHUT HI SUNDAR BHAW ........BADHIYA
bahut sunder rachana. Wah -- wah
गहन अभिव्यक्ति..एकदम संपूर्ण प्रवाह में.
umda rachna ke liye badhai sweekaren verma ji.
mujhe 2 stanza bahot hi accha laga...
By the way thanks for visiting my blog, sir.
Regards,
Mayuri
samet di chand shabdo me sari vyatha .
kya kahu? bhugti hui antarkatha !!
gajab ki shabdo ki jadugari
bahut bahut badhai apko
Manveey santrash ki is katha ne to jeevan sangharsh bayan kar diya.....bahut sunder lekhan!
waah... shabdon main naya rang.......
bahut khub........
behtarin rachna.mere blog me amulya tippani ke liye dhanyawaad
i translated it !!
the meaning was so powerful I LOVED !! SO MUCH !!!
check mine please :
p.s: i started posting my story . hope i see your comment !
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