
एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है
ख़त लिखकर
छा गया था
दिलो-दिमाग पर
बेइंतिहा सुरूर
शायद मन में था
कहीं न कहीं
तुम्हे ख़त लिखने पर गुरूर
मुझे याद है उस दिन
ख़त लिखकर
ख़त को अनायास मैंने
चूम लिया था
इतना हल्का हो गया था कि
ख़ुद का भी भान नहीं था
लिफाफे पर क्या लिखूं
इसका भी ध्यान नहीं था
लिफाफे को मैंने
एहसास से सजाया था
पर गलती से
तुम्हारे पते की जगह
ख़ुद का पता लिख आया था
और आज जब
डाकिया ख़त लाया तो --
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एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है