रविवार, 5 जुलाई 2009

तलाश जलते तवे की ----!!


जलते तवे पर
एक बूँद सा मैं जला.
पलांश में आया
भयानक जलजला
और मैं,
भाप बनकर उड़ चला
शायद दिल में हसरत थी
बादल बनने की;
तुम्हारे छत पर
चादर सा तनने की
भीगो देना चाहता था
तुम्हारा छत;
बरसना चाहता था
अनवरत
तुम जहां आकर
गुनगुनाती हो
हर बारिश के साथ
भीग जाती हो.
पर शायद
वायुदाब की कमी थी
या शायद
मेरे अन्दर ‘आब’ की कमी थी
बादल नहीं बन पाया
तरसता रह गया बरसने को

आज फिर अपने अन्दर
और अधिक आब इकट्ठा करके
किसी जलते तवे को तलाश रहा हूँ
तय है कि एकदिन मैं
बादल बनूंगा
बरसूंगा तुम्हारे छ्त पर
मैं सावन ----

21 टिप्‍पणियां:

Razia ने कहा…

आपकी कविता अच्छी लगी
शुक्रिया

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

शशक्त अभिव्यक्ति .......... गहरी रचना है ....... कमाल का लिखते हैं आप ..... लाजवाब

ओम आर्य ने कहा…

aapki kawita me ek tarah ka jadu hota hai ............bahut hi sundar

USHA GAUR ने कहा…

वर्मा जी
भावनाओ को इतनी बारीकी से उकेरा है आपने कि --
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति --
बहुत कोमल भाव ---

बेनामी ने कहा…

बेहतरीन !!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

"तय है कि एकदिन मैं
बादल बनूंगा
बरसूंगा तुम्हारे छ्त पर
मैं सावन "
इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...

संजीव गौतम ने कहा…

"तय है कि एकदिन मैं
बादल बनूंगा
बरसूंगा तुम्हारे छ्त पर"
पूरी कविता की जान हैं ये पंक्तियां. बहुत -बहुत बधाई.

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

sundar bhav..prem aur deewangi ka sundar rachaav...!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

श्रीमन, कविता तो बहुत सुन्दर है, मगर आप को नहीं लगता कि इरादों में उग्रता झलकती है ?

Murari Pareek ने कहा…

bahut sundar rachnaa hai bano baadal barso chhat pat

anil ने कहा…

बेहतरीन कविता

cartoonist anurag ने कहा…

bahut sunder rachna hai...
ek-ek shabd main gahraee hai.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आज फिर अपने अन्दर
और अधिक आब इकट्ठा करके
किसी जलते तवे को तलाश रहा हूँ
तय है कि एकदिन मैं
बादल बनूंगा
बरसूंगा तुम्हारे छ्त पर

अदभुध रचना............. बूँद बन कर उड़ना और फिर बरसने की चाह.......... गहरे भाव

सदा ने कहा…

तय है कि एकदिन मैं
बादल बनूंगा
बरसूंगा तुम्हारे छ्त पर !!

बहुत ही बेहतरीन शब्‍दों के साथ सजी यह रचना आभार् ।

Urmi ने कहा…

बहुत सुंदर कविता लिखा है आपने! बस यही कहूँगी कि आपकी लेखनी को सलाम! आपका हर एक ब्लॉग इतना ख़ूबसूरत है कि कोई जवाब नहीं!

ज्योति सिंह ने कहा…

आज फिर अपने अन्दर
और अधिक आब इकट्ठा करके
किसी जलते तवे को तलाश रहा हूँ
तय है कि एकदिन मैं
बादल बनूंगा
बरसूंगा तुम्हारे छ्त पर
मैं सावन ----
aap bahut hi behatrin likhate hai jiska varrnan nahi .

Shruti ने कहा…

jalte tawe par boond sa jalna..
bahut khoob comparison kiya hai aapne

mehek ने कहा…

bahut sunder abhivyakti,tave par boond aur baadal ban jane ka sapna bahut khub.

Razi Shahab ने कहा…

आपकी कविता अच्छी लगी
शुक्रिया

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तलाश जलते तवे की....संभव हो तो इस रचना को अपने स्वर में रिकॉर्ड करके भेज दें,एक छोटा परिचय भी ....rasprabha@gmail.com

shama ने कहा…

Aksar hee aapkee rachnayen,mujhe nishabd kar jaatee hain...anubhav se upje alfaaz...jo dilme utare bina ruk nahee sakte...

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