रविवार, 26 जुलाई 2009

ख़त फ़िर मेरे हाथ में है --


एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है
ख़त लिखकर
छा गया था
दिलो-दिमाग पर
बेइंतिहा सुरूर
शायद मन में था
कहीं न कहीं
तुम्हे ख़त लिखने पर गुरूर
मुझे याद है उस दिन
ख़त लिखकर
ख़त को अनायास मैंने
चूम लिया था
इतना हल्का हो गया था कि
ख़ुद का भी भान नहीं था
लिफाफे पर क्या लिखूं
इसका भी ध्यान नहीं था
लिफाफे को मैंने
एहसास से सजाया था
पर गलती से
तुम्हारे पते की जगह
ख़ुद का पता लिख आया था
और आज जब
डाकिया ख़त लाया तो --
.
एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है

25 टिप्‍पणियां:

adwet ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा आपने

ओम आर्य ने कहा…

BAHUT HI SUNDAR KHAT AAPANE YADO KE JHAROKHE SE NIKAL KAR RAKH DI HAI .....

vandana gupta ने कहा…

kya khoob likha hai.......bahut gahre bhav hain.

vandana-zindagi.blogspot.com

Razia ने कहा…

बहुत खूब लिखा है.
भावपूर्ण एहसास
==
पता बदल कर फिर से पोस्ट कर दीजिए.

अर्चना तिवारी ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता

अर्चना तिवारी ने कहा…

पर गलती से तुम्हारे पते की जगह ख़ुद का पता लिख आया थाऔर आज जबडाकिया ख़त लाया तो --.एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है

ye panktiyan bhut bhaavpoorn hain

संगीता पुरी ने कहा…

सुंदर रचना !!

USHA GAUR ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव की कविता
वाह

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है आपने।।

निर्मला कपिला ने कहा…

कुछ यादे कई बार खत के रूप मे वापिस आ ही जाती हैं सुन्दर रचना आभार्

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत खूब-बेहतरीन!!

Urmi ने कहा…

वाह क्या बात है! बहुत खूब लिखा है आपने और साथ में चित्र भी बहुत सुंदर है!

शारदा अरोरा ने कहा…

यानि खुद से ही खुद ही कहते रहे , पता अपना ही लिखते रहे , उन तक न पहुँचा संदेसा कोई , अपने संदेसे खुद तक पहुँचते रहे |

Razi Shahab ने कहा…

लाजवाब बहुत खूब

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अक्सर किसी के यादों में डूब कर लिखे ख़त अपने पास ही लौट आते हैं.................. लाजवाब रचना है .........

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

वर्मा साहब,

खुदा करे उस खत का अहसास ताजिन्दगी बना रहे और वो भीनी खुश्बू आपके हाथों में सलामत रहे।

बहुत अच्छा अंदाज अपनी बात कहने का।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

अनिल कान्त ने कहा…

बेहद खूबसूरत भाव

PREETI BARTHWAL ने कहा…

खूबसूरत भांवों से भरा खत

संजीव गौतम ने कहा…

ख़त लिखकर
ख़त को अनायास मैंने
चूम लिया था
इतना हल्का हो गया था कि
ख़ुद का भी भान नहीं था
और
बेहद ख़ूबसूरत पंक्तियां हैं.

Prem Farukhabadi ने कहा…

लिफाफे को मैंने एहसास से सजाया थापर गलती से तुम्हारे पते की जगह ख़ुद का पता लिख आया थाऔर आज जबडाकिया ख़त लाया तो --.एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है

kya andaz hai aapka
kisi ko pata na chala aur unka khat aa gaya ho jaise .bahut achha laga.

सौरभ के.स्वतंत्र ने कहा…

पर गलती से
तुम्हारे पते की जगह
ख़ुद का पता लिख आया था
और आज जब
डाकिया ख़त लाया तो --

क्या भाव रचा है आपने..एकदम जीवन्त चित्रण..

Neeraj Kumar ने कहा…

Verma Sb.
Aapki rachna ka andaj-e-bayan aisa hai ki ant padhkar chamatkrit ho gaya...Wah!
Shuru men jo socha, ant uska bilkul alag ho gaya...

Akanksha Yadav ने कहा…

Apne to khaton ki yad taja kar di...bahut khubsurat kavita.

फ्रेण्डशिप-डे की शुभकामनायें. "शब्द-शिखर" पर देखें- ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे !!

vijay kumar sappatti ने कहा…

varma saheb , aapki lekhni ko salaam , mujhe to bahut kuch yaad aa gaya sir.. naman hai aapko

vijay

pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com

Unknown ने कहा…

vermaji
kya khoob chitran kiya hai aapne prem mein madhosh deewane ka...wah khud ko hi khudne patra likh dala ...acha laga ...