एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है
ख़त लिखकर
छा गया था
दिलो-दिमाग पर
बेइंतिहा सुरूर
शायद मन में था
कहीं न कहीं
तुम्हे ख़त लिखने पर गुरूर
मुझे याद है उस दिन
ख़त लिखकर
ख़त को अनायास मैंने
चूम लिया था
इतना हल्का हो गया था कि
ख़ुद का भी भान नहीं था
लिफाफे पर क्या लिखूं
इसका भी ध्यान नहीं था
लिफाफे को मैंने
एहसास से सजाया था
पर गलती से
तुम्हारे पते की जगह
ख़ुद का पता लिख आया था
और आज जब
डाकिया ख़त लाया तो --
.
एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है
25 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर लिखा आपने
BAHUT HI SUNDAR KHAT AAPANE YADO KE JHAROKHE SE NIKAL KAR RAKH DI HAI .....
kya khoob likha hai.......bahut gahre bhav hain.
vandana-zindagi.blogspot.com
बहुत खूब लिखा है.
भावपूर्ण एहसास
==
पता बदल कर फिर से पोस्ट कर दीजिए.
बहुत खूबसूरत कविता
पर गलती से तुम्हारे पते की जगह ख़ुद का पता लिख आया थाऔर आज जबडाकिया ख़त लाया तो --.एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है
ye panktiyan bhut bhaavpoorn hain
सुंदर रचना !!
बहुत सुन्दर भाव की कविता
वाह
बहुत सुन्दर लिखा है आपने।।
कुछ यादे कई बार खत के रूप मे वापिस आ ही जाती हैं सुन्दर रचना आभार्
बहुत खूब-बेहतरीन!!
वाह क्या बात है! बहुत खूब लिखा है आपने और साथ में चित्र भी बहुत सुंदर है!
यानि खुद से ही खुद ही कहते रहे , पता अपना ही लिखते रहे , उन तक न पहुँचा संदेसा कोई , अपने संदेसे खुद तक पहुँचते रहे |
लाजवाब बहुत खूब
अक्सर किसी के यादों में डूब कर लिखे ख़त अपने पास ही लौट आते हैं.................. लाजवाब रचना है .........
वर्मा साहब,
खुदा करे उस खत का अहसास ताजिन्दगी बना रहे और वो भीनी खुश्बू आपके हाथों में सलामत रहे।
बहुत अच्छा अंदाज अपनी बात कहने का।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बेहद खूबसूरत भाव
खूबसूरत भांवों से भरा खत
ख़त लिखकर
ख़त को अनायास मैंने
चूम लिया था
इतना हल्का हो गया था कि
ख़ुद का भी भान नहीं था
और
बेहद ख़ूबसूरत पंक्तियां हैं.
लिफाफे को मैंने एहसास से सजाया थापर गलती से तुम्हारे पते की जगह ख़ुद का पता लिख आया थाऔर आज जबडाकिया ख़त लाया तो --.एक ख़त
जो लिखा था
मैंने तुम्हे कभी
वो ख़त आज फिर
मेरे हाथ में है
kya andaz hai aapka
kisi ko pata na chala aur unka khat aa gaya ho jaise .bahut achha laga.
पर गलती से
तुम्हारे पते की जगह
ख़ुद का पता लिख आया था
और आज जब
डाकिया ख़त लाया तो --
क्या भाव रचा है आपने..एकदम जीवन्त चित्रण..
Verma Sb.
Aapki rachna ka andaj-e-bayan aisa hai ki ant padhkar chamatkrit ho gaya...Wah!
Shuru men jo socha, ant uska bilkul alag ho gaya...
Apne to khaton ki yad taja kar di...bahut khubsurat kavita.
फ्रेण्डशिप-डे की शुभकामनायें. "शब्द-शिखर" पर देखें- ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे !!
varma saheb , aapki lekhni ko salaam , mujhe to bahut kuch yaad aa gaya sir.. naman hai aapko
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
vermaji
kya khoob chitran kiya hai aapne prem mein madhosh deewane ka...wah khud ko hi khudne patra likh dala ...acha laga ...
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