उस दिन तय था कि
हम मिलेंगे
इसी दरख्त के नीचे
परिन्दों की चहकन सुनते हुए
बैठा रहा मैं ख्वाब बुनते हुए
समय के भान से परे हो गया था
और -----
----- और तुम नहीं आई
.
आज जबकि तय है कि
तुम नहीं मिलोगी
इस दरख्त के नीचे
तनहा आँखें मीचे
परिन्दों की चहकन सुनते हुए
बैठा रहा हूँ मैं ख्वाब बुनते हुए
समय के भान से परे हूँ मैं
शायद ----
---- शायद तुम आ जाओ
.
आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है ----
हम मिलेंगे
इसी दरख्त के नीचे
परिन्दों की चहकन सुनते हुए
बैठा रहा मैं ख्वाब बुनते हुए
समय के भान से परे हो गया था
और -----
----- और तुम नहीं आई
.
आज जबकि तय है कि
तुम नहीं मिलोगी
इस दरख्त के नीचे
तनहा आँखें मीचे
परिन्दों की चहकन सुनते हुए
बैठा रहा हूँ मैं ख्वाब बुनते हुए
समय के भान से परे हूँ मैं
शायद ----
---- शायद तुम आ जाओ
.
आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है ----
24 टिप्पणियां:
आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है ----
बहुत खूबसूरत एहसास --
बहुत सुन्दर रचना
बहुत खूब
शायद का कोई प्रश्न नहीं आयेंगी वो पास।
भाव शब्द संयोग से रचना बनी है खास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अत्यन्त सुन्दर रचना है
---
1. चाँद, बादल और शाम
2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
sahi kaha aapane tay to kuchh bhi mahi hai ......ek gahari anubhooti deti rachana...........bahut badhiya
आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है
waah bahut hi gehre bhva,dil tak pahunch gaye,sahi hai kuch tay karna bada mushkil.sunder rachana.badhai
आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है
बहुत खूब सूरत अंदाज़ मे इन्तज़ार और इज़्हार को शब्द दिये हैं लाजवाब शुभकामनायें्
VERY GOOD COMPOSITION
WOW!
बहुत सही है.
आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है ----
बहुत सही !
sach me jo tay hotas hai wo hota kahan hai..!!!!
क्या बात है ..जो तय है ..उसका भी पता नहीं..अद्भुत कल्पना और अद्भुत रचना जी..बहुत सुन्दर ..
Sundar Vichar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है ----
बहुत सही जगह ले जाकर छोडा है कविता को बहुत कुछ कहकर बहुत कुछ अनकहा वाह्
नमस्कार वर्मा जी कितनी खूबसूरती से एक बेहतरीन अहसास को शब्द दिए है अद्भुद है , भावो के द्वंद को जिस तरह से आप ने दरसाया है बेहतरीन है भुत ही बेहतरीन दिल को छूने बाली रचना
मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बैठा रहा हूँ मैं ख्वाब बुनते हुए
समय के भान से परे हूँ मैं
शायद ----
---- शायद तुम आ जाओ.
शब्द-चित्र बहुत बढ़िया हैं।
बधाई।
अत्यन्त सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी!
verma ji
yah rachna apke komal premi hraday ka bhan karati hai dil se badhai!
"आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है ----"
itni sehejta se sidh kar keh gaye aap sir ... ek halkaa se dard se nam yeh rchnaa samay ke bandhanon se pare hi hai sir...
आखिर तय का कुछ
पता तो नहीं है ----
Shayad isi ka naam ummeed hai
-Sheena
बहुत ही सुन्दर रचना......धीरे धीरे सारी रचनायें पढ़ रहा हूँ. आभार.
Sundar bhaav.
{ Treasurer-T & S }
varma ji ,
kya kahun , nishabd hoon ... antim panktiyan to gazab ki likhi hui hai ....badhai ...
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
KHPPBSOORAT EHSAAS HAI...LAJAWAAB LIKHA HAI... VAISE TO AGAR KOI CHAAHAT HO TO AISAA HI HOTA HAI...
समय के भान से परे हूँ मैं
शायद ----
---- शायद तुम आ जाओ
आज की मेरी कविता "वक़्त ने साथ छोडा.." के अहेसास दिलाती हुई आपकी रचना। वारी जाउं। बहोत खुब!!!
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