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वह असंस्कारित था
मैने उसे संस्कार देना चाहा
मैंने उसे जिन्दगी का
सार देना चाहा
मैने कहा बोलो 'प्रणाम'
वह फुसफुसाया
अपनी जुबान हिलाया
और बोला 'रोटी'
मैं समझ गया कि
वह भूखा है
मैने उसे रोटी खिलाई
ठंडा पानी पिलाया
वह शातिर था -
वह अपनी भूख को भुना रहा था
वह अब गुनगुना रहा था
मुझे लगा
अब शायद प्रयास में सफल होऊँ
चलो अब इसमें संस्कार बोऊँ
*
मैने कहा बोलो 'प्रणाम'
वह फिर फुसफुसाया
अपनी जुबान हिलाया
और बोला 'बोटी'
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43 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी रचना है, जय श्री कृष्ण!
सुन्दर अभिव्यक्ति. आभार.
अपनी जुबान हिलाया
और बोला 'रोटी'
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अपनी जुबान हिलाया
और बोला 'बोटी'
बहुत सुन्दर गहरे भाव की कविता. सत्य यही है आदमी मिले से ज्यादा चाहने लगता है
बढ़िया है भाई. बहुत खूब.
बहुत गहरी संवेदना समेटे है ये रचना जन्मश्ट्मी पर बहुत बहुत बधाई
bahut umda rachna , main razia se sahmat hun, aadmi ki vaasnaayen badhti jaati hain.
सुन्दर अभिव्यक्ति जन्माष्टमी शुभकामनाएं
सुन्दर अभिव्यक्ति जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
bahut hi gahre bhav........atyant samvedansheel rachna ......satyaparak.
bahut hi sundar bhaw wali rachana .....bahut bahut badhaaee
waah ...........क्या कहूँ........मुग्ध और stabdh दोनों ही eksaath कर दिया आपकी इस rachna ने....आपकी इस rachna की prashansha में मैं asamarth हूँ,इतने शब्द नहीं मेरे पास.....
ek aadmi ki aam soch ko aam tareeke se batane ki aapki khoobi sachmuch sarahneey hai verma ji. aisa lagta yah rachna na padhkar mujhse bhool hui hai. dil se badhai!!
वर्मा जी मै यैसे ही वाह वाह नहीं कर सकता , कविता में भाव है जिसकी मै बडाई करता हूँ पर उदेश्य और सत्यता के प्रति ससंकित हूँ , मुझे ये रचना एक गरीब भूखे आम जन की मजाक जैसी उडाती लगी , आप संस्कारित करना चाहते थे इसका स्वागत है , पर भूख के जबान नहीं होती , कही न कहीं आप की रोटी और पानी में ही येसा दोष था या फिर आप के द्बारा दिए गए माहौल में येसा दोष था जो उसे संस्कार बाण न बना कर लालची भोग बाद की और ले गया ,, उसकी लालसा और लालच पर ध्यान जाने से पहले अपनी रोटी की शुद्धता और सत्यता का आलोकन आवश्यक है ,,,,
इसे व्यगतीगत न ले मै आप का बहुत सम्मान करता हूँ
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
waah kya baat hai. bahut sundar.
प्रवीण भाई की टिप्पणी में दम है लेकिन ऐसा भी होता है. अभी कुछ दिन पहले ताजमहल बाहर से आये मित्र को घुमाने ले गया. रिक्शेवाले से तय किया पांच रू0 में व्ह तैयार भी हो गया. जब रू0 दिये तो खुले न होने के कारण दस दे दिये उसने लौटाये नहीं बोला दस ही तो तय हुए थे. बद्तमीजी पर उतर आया लेकिन भाई उअसने रू0 लौटाये नहीं. बुढ्ढा था ज्यादा कुछ करंने का भी मन नहीं हुआ. उस समय सारी दया करुणा हवा हो गयी. हालांकि ये अपवाद है लेकिन ऐसे भी हैं जो संवेदनाओं को भुनाते हैं.
प्रवीण जी
सादर
आप रचना को समीक्षक दृष्टि के साथ अवलोकित किये इसके लिये धन्यवाद!
आपकी टिप्पणी के बाद मैने अपनी रचना को पुन: आपके नज़रिये से पढा. मुझे भी वही भाव नज़र आये जो आपने इंगित किया था. तदुपरांत मैने अपनी रचना मे आवश्यक परिवर्तन कर दिया है.
आपकी दृष्टि की सचेतनता को मेरा सलाम
एम वर्मा
Vah...........lajawaab, khali pet aur bhare huve pet ka antar bahoot hi sahaj tarike se likha hiya hai aapne.... kamaal ka likha hai
संवेदनशील रचना!यथार्थ का एक दृष्टिकोण ये भी है!
aapki yah rachna saty aur anubhavon ke itne nikat lagi ki kai baar ise padha,fir bhi iska ras badhit na hua....
aapki lekhni aur anubhav ke sammukh swatah hi man natmastak hua jata hai...aise hi likhte rahen...shubhkamna...
अपनी जुबान हिलाया
और बोला 'रोटी'
अपनी जुबान हिलाया
और बोला 'बोटी'
बहुत ही बढ़िया...
हो सकता है कि यह शत-प्रतिशत सही न हो लेकिन ऐसी घटनाएं आये दिन होती हैं.....
'रोटी' को 'बोटी में तब्दील होते देर नहीं लगती..
मुझे बहुत अच्छी लगी...
बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति और लाजवाब रचना लिखा है आपने! आपकी हर एक रचना उम्दा होता है!
जीवन के करीब से गुजरती हुई रचना।
( Treasurer-S. T. )
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
सुंदर रचना आपकी। अंत क्या लाये हैं वाक़इ आप।
sanskaar boone ki aapne yeh naakaam koshish is kavita mein bahut hi kaamyaan rahi...
bahut khoob
-Sheena
sahi mein jab kisi ko zaroorat se zyada milne lagta hai....... to chadh jata hai.......
gahre ehsaason wali rachna
RACHNA ACHCHHI LAGI. LEKIN SANSKAR HUM SAB KO BONE PADEGE TABHI INKA KUCHH BHALA KAR PAYEGE. EK GHATNA YAD AATI HEY. BUS STAND PAR BETHA THA TABHI EK LADKA AAYA BABOOJI POLISH KAR DOO? 2RUPAYEE DE DENA MENE USE TALL DIYA. TABHI SHANI DEV RAKCHHA KARE WALE BALAK KO MENE 5 RJPAYE KA SIKKA NIKAL KAR DE DIYA MAUUS POLISH WALA BALAK AAKAR BOLA UNCLE KYA KAL SE ME BHI YAHI KAAM SHUROO KAR DOO?ASHOK KHATRI BAYANA RAJASTHAN
rachna ka ant badiya aur hila dene wala tha....
..rachan shuru se lekar ant tak baandhe rakhti hai.
"वह शातिर था -
वह अपनी भूख को भुना रहा था
वह अब गुनगुना रहा था"
is line main geyta ka bhav aur rhyming ise is poem ki sabse acchi line bana dete hain....
kya apne pravin ji ke comment ke baad koi change kiye hain?
यह रोटी से बोटी मे रूपांतरण के बहाने आपने ज़रूरत्मन्द और पाखंडी के बीच का भेद स्प्ष्ट कर दिया ।-शरद कोकास ,दुर्ग
वर्माजी ,
इयत्ता पर आपकी टिप्पणी से आपके ब्लॉग पर आया . अच्छा लगा. आपकी कविता अच्छी लगी. फिर मुलाकात होगी.
वर्माजी ,
इयत्ता पर आपकी टिप्पणी से आपके ब्लॉग पर आया . अच्छा लगा. आपकी कविता अच्छी लगी. फिर मुलाकात होगी.
Bahutt sundar.
( Treasurer-S. T. )
Bahut badhiya. rotee mil gaee to botee bhee chahiye.
very nice poem!
जीवन के इतने कडवे यथार्थ को जितने आसान शब्दों में आपने कविता का रूप दिया, उसके लिए बधाई. बहुत पैनी, गहरी, तीखी निगाह रखते हैं आप. मुझे अफ़सोस है, मैं आपको देर में ढूंढ सका.
अति सुंदर भाव।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
बालमन की भावनाओं का सटीक चित्रण किया है आपने। इस हेतु हाद्रिक बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut khoob....kya kahun..lafzon main tareef to mumkin hi nahi!
दुलारा भाई, इतने दिनों बाद इस रूप में मिलना अच्छा लगा। बहुत बहुत बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut khoob
bahut khoob...sachhai yahi hai
रचना में थोडी अतिश्योक्ति हो सकती है परन्तु काफी सच है ,सच है कि इंसान कभी संतुष्ट नहीं होता.अच्छी लगी आपकी कविता.
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