गुरुवार, 27 मई 2010

आधा तुम्हारे लिये और आधा मेरे लिये, बाकी बचे सो ... (लघुकथा)

उसने अपनी प्रजा से कहा जाओ और मेहनत करो, खेतों में रोटियाँ उगाओ. हम तुम्हें खुशहाल देखना चाहते है.

उसके कारिन्दे उन्हें शर्ते बताने लगे :

"कोई भी रोटी खाने की हिमाकत न करे. उत्पादित रोटी पहले यहा लाया जायेगा. राजा पहले उसका निरीक्षण करेंगे और फिर तुम्हें तुम्हारा हिस्सा मिल जायेगा."

लोग चले गये. मेहनत की और कुल एक सम्पूर्ण रोटी का उत्पादन किया. वे उसे लेकर कारिन्दे के पास आये. कारिन्दे ने रोटी लिया और राजा के पास ले गया. रास्ते में एक टुकड़ा रोटी कम हो गया (??). जब राजा ने नुचे हुए हिस्से के बारे में पूछा तो कारिन्दे ने बताया कि खेत में कोई दोष है, रोटी ऐसी ही उत्पादित हुई थी.

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राजा ने कहा इसे दो हिस्से में बांट दो. एक हिस्सा मैं खा लेता हूँ और दूसरा तुम खा लो, बाकी जो बचेगा वह लोगों में बांट देना.

कारिन्दा हैरान था आखिर बचेगा क्या जो बांटा जायेगा. उससे रहा नहीं गया, उसने राजा से पूछ लिया. राजा को उसकी मूर्खता पर हैरानी हुई. उन्होने बताया, "जब हम खायेंगे तो जूठन नहीं बचेगा क्या" वही बाँट देना.

कारिन्दा ने वैसा ही किया. जनता अपना हिस्सा पाकर निहाल हो गयी. राजा के जयकारे लगने लगे.

14 टिप्‍पणियां:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

nice.. :)

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत करारा व्यंग्य कसा है. जनता कैसे कैसे निहाल हो जाती है.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

बेहाल जनता को निहाल करने का शानदार उपाय। जनता नहीं रहनी चाहिए किसी हाल में निरुपाय।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Yahee sab kuch aaj is lotantr mein bhee ho rahaa hai. kamaate ham hai aur tax ye khaa rahe hai. jhoothan hamaare liye !

श्यामल सुमन ने कहा…

यह तो बहुत जोर का झटका है वर्मा जी जो आपने धीरे से दिया। सुन्दर।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

ऐसे ऐसे राजा जी है जो पाने प्रजा का कितना ख्याल रखते है..बढ़िया प्रस्तुति..बधाई

Unknown ने कहा…

लघुकथा के माध्यम से करारा व्यंग्य........सशक्त व सार्थक अभिव्यक्ति.......शुभकामनाएं।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहुत करारा व्यंग्य वर्मा जी

नमस्कार

Shah Nawaz ने कहा…

:)

शुक्र है झुटन तो मिली, वर्ना शासक वर्ग तो जनता को इस लायक भी नहीं समझता है. बेहतरीन व्यंग, बहुत खूब!

Shah Nawaz ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
स्वप्निल तिवारी ने कहा…

yahi hota aaya hai jab se raaja praja wala system shuru hua hai tab se.. badhiya prastuti

Razia ने कहा…

करारा व्यंग्य, सुन्दर लघुकथा

Ra ने कहा…

व्यंग नहीं लगा हमें ये ,,,,,,बहुत गहराई से रचित लघुकथा है

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

जनता की तरह हम भी निहाल हो गए ...