निरावेशन की शून्यता मुझे मंजूर नहीं है ....
रूठे बादलों
तुम्हारा रूठना सबक दे गया
बेशक तूँ हमारे दुख-दर्द
न हर
तय कर लिया है हमने
निकालेंगे यहीं से एक
नहर
………………………………
जैसे ही बादलों ने
धरा को
मेंह दी
उसे लगा
साजन आने वाले हैं
वह रचने लगी
मेंहदी
बादल को इंगित कर सुन्दर रचनाकारी!
बादल और सजनी का तो गहरा रिश्ता है, बहुत अच्छा लिखा है. बहुत खूब!
बढ़िया तुलना दी है ..खूबसूरत रचना.
सुन्दर क्षणिकाएँ
मेह दी और मेह दीं का खूबसूरत प्रयोग...बहुत दिनों बाद लिखा ये शब्दों का चमत्कार
सुन्दर रचना और भावना का सही मेल ...
बहुत खूबसूरत और शब्दो का चमत्कार युक्त रचना
एक बार फिर शब्दों का बेहतरीन खेल..वर्मा जी माहिर है आप ग़ज़ब की प्रस्तुति..सुंदर रचना और सुंदर भाव..बधाई स्वीकारें
बहुत खूब.
आपने निःशब्द कर दिया....
वाह .. बढिया !!
बादलों ने धरा को मेह दी और वह रचने लगी मेहंदी ...बहुत भीनी सी प्यारी सी कविता ...!!
सुंदर रचना।--------करे कोई, भरे कोई?हाजिर है एकदम हलवा पहेली।
बहुत से ब्लोग देखे,पर लगा कहीं,न मन,आपके ब्लोग की,इस रचना के लिए,मन करता है,आपकोनमन !
बादलों ने धरा को मेंह दी उसे लगा साजन आने वाले हैं वह रचने लगी मेंहदी...खूबसूरत रचना.....
नहर और मेहंदी का अच्छा समावेश, हाँ मगर जब तक युपीए वाले नहीं चाहेंगे, आप नहर नहीं निकाल सकते !
शब्दों के सटीक प्रयोग,दोनों क्षणिकाएं बेहद लाजवाब.हार्दिक बधाइयाँ...........चन्द्र मोहन गुप्त जयपुर
बादलों को देख कर खूब कवितायें लिख रहे हैं बधाई इस सुन्दर रचना के लिये
बहुत खूबसूरत ....
सच है बादलो को देख कितने ख्याल उमड़ते है हमारे मन मे !!
mendi bairn hns rhi dekh jeth ka tap ye kya shitl kregi grmi ka sntap achchha pryog dr. ved vyathit
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21 टिप्पणियां:
बादल को इंगित कर सुन्दर रचनाकारी!
बादल और सजनी का तो गहरा रिश्ता है, बहुत अच्छा लिखा है. बहुत खूब!
बढ़िया तुलना दी है ..खूबसूरत रचना.
सुन्दर क्षणिकाएँ
मेह दी और मेह दीं का खूबसूरत प्रयोग...बहुत दिनों बाद लिखा ये शब्दों का चमत्कार
सुन्दर रचना और भावना का सही मेल ...
बहुत खूबसूरत और शब्दो का चमत्कार युक्त रचना
एक बार फिर शब्दों का बेहतरीन खेल..वर्मा जी माहिर है आप ग़ज़ब की प्रस्तुति..सुंदर रचना और सुंदर भाव..बधाई स्वीकारें
बहुत खूब.
आपने निःशब्द कर दिया....
वाह .. बढिया !!
बादलों ने धरा को मेह दी और वह रचने लगी मेहंदी ...
बहुत भीनी सी प्यारी सी कविता ...!!
सुंदर रचना।
--------
करे कोई, भरे कोई?
हाजिर है एकदम हलवा पहेली।
बहुत से ब्लोग देखे,
पर लगा कहीं,
न मन,
आपके ब्लोग की,
इस रचना के लिए,
मन करता है,आपको
नमन !
बादलों ने धरा को मेंह दी उसे लगा साजन आने वाले हैं वह रचने लगी मेंहदी...
खूबसूरत रचना.....
नहर और मेहंदी का अच्छा समावेश, हाँ मगर जब तक युपीए वाले नहीं चाहेंगे, आप नहर नहीं निकाल सकते !
शब्दों के सटीक प्रयोग,
दोनों क्षणिकाएं बेहद लाजवाब.
हार्दिक बधाइयाँ...........
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
बादलों को देख कर खूब कवितायें लिख रहे हैं बधाई इस सुन्दर रचना के लिये
बहुत खूबसूरत ....
सच है बादलो को देख कितने ख्याल उमड़ते है हमारे मन मे !!
mendi bairn hns rhi dekh jeth ka tap
ye kya shitl kregi grmi ka sntap
achchha pryog
dr. ved vyathit
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