आज भी
यथारूप सहेज रखा है मैने
स्मृतियों के तहखाने में
अनायास और अकस्मात अर्जित
तुम्हारे उस स्पर्श को,
जिसने न केवल मेरे वजूद को
वरन
समस्त कायनात, धरती-आसमान को
क्षणांश के लिये
प्रकम्पित कर दिया था.
लाज का जो आवरण
कर लिया था तुमने धारण;
कम्पायमान अधरों से
अस्फ़ुट स्वर में
न जाने किस शब्द का
तुमने किया था उच्चारण;
वह पल
दिल के हर एहसास से अलग
यथारूप बसा हुआ है.
उस स्पर्श से विलग
न जाने कितनी बार
सुनियोजित स्पर्श किया है तुम्हें,
न जाने कितनी बार
निहारा है मैनें
तुम्हारे लाजवंती स्वरूप को,
पर नहीं हुए प्रकम्पित
धरती-आसमान फिर
.
मुंतज़िर हूँ फिर उसी
स्पर्श एहसास का,
अनुनादित करना है मुझे
स्मृतियों का तार-तार
कायनात का प्रकम्पन, मैं फिर
महसूस करना चाहता हूँ
15 टिप्पणियां:
लफ्ज़ ब लफ्ज़ तो याद नहीं है, पर ये शेर मैंने किसी के ब्लॉग पर पड़ा था :
अब इससे ज्यादा और क्या नरमी बरतूं सनम,
जख्मों को छुआ है, तेरे गालों की तरह ...
बहुत कलात्मक चित्रमयी कविता ... लिखते रहिये ...
लाजवाब एहसास की कविता ..
मुंतज़िर हूँ फिर उसी स्पर्श एहसास का, अनुनादित करना है मुझे स्मृतियों का तार-तार कायनात का प्रकम्पन, मैं फिर महसूस करना चाहता हूँ
गज़ब की शानदार प्रस्तुति है…………बेहद उम्दा।
bahut sundar likha hai aapne..........shabdo ka chayan ati sundar .....aap hamesha hii achchha likhte hai ........badhiya
मुंतज़िर हूँ फिर उसी
स्पर्श एहसास का,
अनुनादित करना है मुझे
स्मृतियों का तार-तार
कायनात का प्रकम्पन, मैं फिर
महसूस करना चाहता हूँ
अंतर्मन के गहन अहसासों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .आपकी हर रचना दिल को छू जाती है..आभार.
मुंतज़िर हूँ फिर उसी
स्पर्श एहसास का,
अनुनादित करना है मुझे
स्मृतियों का तार-तार
कायनात का प्रकम्पन, मैं फिर
महसूस करना चाहता हूँ
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खूबसूरत अहसास अपने में समेंटे हुए कमाल की अभिव्यक्ति है यह तो!
शानदार रचना और खूबसूरत प्रस्तुती ...
बढ़िया रचना ।
ज़िदगी के कुछ पल कभी नहीं भूलते।...एक क्षणांश को फिर से पाने की लालसा को अभिव्यक्त करती एक बेहद प्रभावशाली कविता।
बहुत ही उम्दा कविता.
लाजवाब! खूबसूरत चित्रण!
सुंदर रचना वर्मा जी
दुर्गा नवमी की हार्दिक बधाई।
अनुनादित करना है मुझेस्मृतियों का
तार-तारकायनात का प्रकम्पन,
मैं फिर महसूस करना चाहता हूँ
लाजवाब एहसास की कविता ...........
पहले स्पर्श की अनुभूति और उस पर आपके शब्द । कोमलता साक्षात सामने आ गई । कायनात का प्रकंपन वाह कितना सटीक
औचक ही कोई एहसास , कोई पल पूरे जीवन की संपत्ति हो जाते हैं ...
और उसी पल उसी एहसास को लिए फिर उसी पल की तलाश ...!
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