तुमने कहा --
रूको, मत जाओ
मैनें समझा --
रूको मत, जाओ
और मैं
चुपचाप चला आया था -- उस दिन
बिना किसी शोर
बिना किसी तूफान
कितना भयानक
ज़लज़ला आया था -- उस दिन
काश !
तुमने देखा होता
चट्टान का खिसकना
काश !
तुमने भी देखा होता
वह मंजर
जब एक मकान
ढहा था अधबना
और
उड़ने को आतुर एक कबूतर
दब गया था
शायद यह --
‘वैयाकरण’ की साजिश थी
रूको, मत जाओ
मैनें समझा --
रूको मत, जाओ
और मैं
चुपचाप चला आया था -- उस दिन
बिना किसी शोर
बिना किसी तूफान
कितना भयानक
ज़लज़ला आया था -- उस दिन
काश !
तुमने देखा होता
चट्टान का खिसकना
काश !
तुमने भी देखा होता
वह मंजर
जब एक मकान
ढहा था अधबना
और
उड़ने को आतुर एक कबूतर
दब गया था
शायद यह --
‘वैयाकरण’ की साजिश थी
16 टिप्पणियां:
बहुत भावमय और मार्मिक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
तुमने कहा --
रूको, मत जाओ
मैनें समझा --
रूको मत, जाओ
जी हा यह तो वैयाकरण की ही साजिश है.
मार्मिक रचना ---
बहुत खूब
तुमने कहा --
रूको, मत जाओ
मैनें समझा --
रूको मत, जाओ
बहुत सुन्दर भावः पूर्ण रचना है अच्छी लगी
बहुत भावनात्मक .. सुंदर रचना !!
वैयाकरण की साजिश...! वाह, क्या बात है।
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
aapke lakhne ka kamal
सबसे पहले राम राम, टिप्पणी देने के लिये धन्यवाद
सुन्दर अभिव्यक्ति
Is sundar aur arthpurn rachna ke liye badhai.
aaderneey
varma ji bahut hi marmik rachna hai....seedhe dil par var karti hai...
sundar kavita h
antim do line na hoti to kavita aur bhi prabhavsali hoti...
शशक्त अभिव्यक्ति .......... गहरी रचना है ....... कमाल का लिखते हैं आप ..... लाजवाब
तुमने कहा --
रूको, मत जाओ
मैनें समझा --
रूको मत, जाओ
और मैं
चुपचाप चला आया था -- उस दिन
bahut khoob..
behtareen..
sachmuch yah 'vaiyakaran' ki hi saajish hai...
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
तुमने कहा --
रूको, मत जाओ
मैनें समझा --
रूको मत, जाओ
और मैं
चुपचाप चला आया था -- उस दिन
marmik aur sunder .
thanks for visting you have a honestt blogg will keep coming
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